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भगवानने हाथ और पैर क्यों दिए हैं ? motivational story 

भगवानने हाथ और पैर क्यों दिए हैं small motivational story
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कांची नगर में एक बहुत ही प्रामाणिक और संतोषी मोची रहता था , एक दिन उसके पास एक साधु आए , साधु ने वहां देखा कि मोची हर ग्राहक को पहले जूते बनवाने के लिए ₹2 कहता था उसके बाद ढाई रुपए ले लेता था ,

साधु : मोचीभगत मेरे पैर के जूते की कितने लगेंगे ,

मोची : महाराज मेरे पास तैयार जूते नही है ,

साधु : ठीक है फिर नए बनवा दीजिए उसके कितने लगेंगे ,

मोची : ढाई रुपये महाराज ,

साधु सोचने लगा कि यह मौसी सबको पहले ₹2 कहता था बाद में ढाई रुपए तक आता था लेकिन मुझे पहले ही ढाई रुपए क्यों कहा होगा ,

साधु : ढाई रुपए तो कहने के लेकिन लेने के कितने ?

मोची : ढाई रुपए ही महाराज अगर आपकी इच्छा हो तो मैं बनाऊ ,

साधु : अच्छा ठीक है बनाइए कब लेने आऊं ,

मोची : परसो इसी वक्त पर महाराज ,

साधु : ठीक है लेकिन मोचीभगत मुझे परसो कहीं बाहर जाना है इसलिए देर मत लगाना,

मोची : महाराज आप परसों बाहर जाए या ना जाए लेकिन जूते आपको परसों मिल ही जाएंगे ,

साधु वहां से चला गया मगर साधु को मोची के वादे पर जरा भी भरोसा नहीं था इसलिए वह अगले दिन फिर मोची से हालचाल पूछने के लिए गए ,
भगवानने हाथ और पैर क्यों दिए हैं small motivational story
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साधु : मोचीभगत कहा तक पोहचा हमारा काम ,

मोची : चिंता ना करें महाराज में अपना वादा नहीं भूलूंगा ,

साधु वहां से फिर चला गया और वादे के अनुसार वह उसके टाइम पर जूते लेने के लिए मोची के पास गया , जब वह मोची के पास पहुंचे तब उसने देखा कि उसके जूते तैयार पड़े थे यह देखकर साधु मोची के ऊपर बहुत खुश हुआ , साधु ने मोदी को ₹2 दिए मोची के पास बाकी के रुपए नहीं थे मोची पैसे लेकर खड़ा हुआ ,

मोची : रुके महाराज में पास की दुकान से बाकी के पैसे लेकर आता हूं ,

साधु :  रहने दीजिए भगत उतने पैसे से मेरी तरफ से कुछ खा लेना ,

मोची : ना महाराज में बिना कर्म से कमाए पैसे नही रखता ,
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मोची बाकी के पैसे लेने के लिए चला गया उसके पीछे साधू ने मोची के सारे औजार सोने के बना दीए , फिर साधु मोची के पास गए और बाकी के पैसे लेकर चले गए , मोची ने दुकान पर आकर देखा तो उसके सारे औजार सोने के बन चुके थे उसे पता चल गया कि यह सब उस साधु महाराज ने किया है ,

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मौसी बहुत ही दुखी हो गया सोचने लगा कि अब इस सोने के औजार से में जूते कैसे बनाऊ , उसने हुआ सोने के औजार एक पेटी में पैक करके रख दिए अब उसके पास वापस से सारे औजार लेने के पैसे नहीं थे उसने बहुत परिश्रम करने के बाद वापस वह  सारे औजार खरीद लिए , एक दिन वह साधु वापस मोची के पास आया ,

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मोची : औजार बिगाड़ कर गए थे वही होना आप महाराज ,

साधु : वह औजार बिगड़े नही थे मोचीभगत वह मैंने सोने के बनाए थे ,

मोची : मुझे पता है महाराज की वह सोना था लेकिन वह सोना मैंने अपने कर्म से नही कमाया था ,

साधु : मोचीभगत आप वह सोनू को बेचकर अपनी कच्ची दुकान को पक्की क्यों नहीं बनवाते और घर बैठ कर आराम कीजिए , काम करने के लिए और लोगों को रख दीजिए  , बैठे बैठे खाना खाइए और मजे उठाइए ,

मोची :  भगवान ने जो यह हाथ पैर दिए हैं उसका क्या करूं मैं महाराज , साधु महाराज भगवान ने हाथ पैर बैठे बैठे खाना खाने के लिए नहीं दिए हैं काम करने के लिए दिए हैं , 

क्यों दोस्तो पता चल गया की भगवान ने हाथ पैर क्यों दिए है , आज और बात करने को और कुछ नही है मेरे पास ok bye and take care  , अगली बार सिर्फ कहानी कहकर नही चला जावूगा ,

बस यही थी मेरी जिंदगी में आज की सिख....